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Saturday, August 7, 2010
dhirendra srivastava ki kavitayen - Google Search
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 8:32 AM 0 comments
Wednesday, August 4, 2010
Saturday, May 22, 2010
संकल्प
एक खत
एक प्रणाम
कबूतर उड़ाने वाले
लाल देश के नाम
कि तुम्हारे कबूतर
अच्छे लगे
खूबसूरत लगे
सच्चे लगे
उसी प्रकार से
जैसे गांव की
बड़ी हवेली से
होने वाला
गीता का पाठ
रामायण और भजन
अच्छा लगता है
लेकिन
रात के अंधेरे में
जब बड़ी हवेली के भीतर
कोई राक्षस
गौरैया खाता है
हमारा मन
सिहर जाता है
सोचता है
कल मरने वाली
गौरैया
हमारे घर की
लाज है
लेकिन
बड़ी हवेली के लिए
एक सामान्य बात है
रामायण और भजन भी
गौरैया का भोजन भी
लेकिन साथी
आप तो
गौरैया के साथी हो
सुबह के दीप की
लाल बाती है
आप कबूतर की जगह
बाज उड़ाते
आपके बाज
हमारे घर आते
हमको समझाते
और किसी दिन
एहसास
कराने के लिए ही
बड़ी हवेली की
एकाध गौरैया खा जाते
लेकिन साथी
मैं जानता हूं
होना और सोचना
दोनों दो दिशाएं हैं
मैं जानता हूं
नदी के किनारे
केवल थपेड़े खाए हैं
फिर भी घबराते नहीं हैं
सोचते हैं
समझते हैं
धीरे- धीरे
दूसरों को भी
समझाते हैं
कि किसी दिन
हम एक साथ
मुठि्ठयां बांधेंगे
फिर बड़ी हवेली में
नाचेंगे, गाएंगे
और अपनी तरह
पीडि़त लोगों के नाम
कबूतर की जगह
बाज उड़ाएंगे
कबूतर की जगह
बाज उड़ाएंगे।
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 3:33 PM 0 comments
परिचय
पता फिलहाल का लिखना है तो जहान लिखो।
मेरा स्थायी पता नीला आसमान लिखो ।।
जाति इंसान लिखो, काम लिखो याराना,
धर्म लिखना है तो धीरेंद्र का ईमान लिखो।।
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 3:24 PM 0 comments
Saturday, January 30, 2010
गांधी का पत्र
संसद का नया सत्र
पाया महात्मा गांधी का पत्र
पूछते हैं
मेरे बेटे कैसे हैं
सब मेरी तरह हैं
या कुछ गोडसे जैसे हैं
संसद ने दिया जवाब
महात्मा जी
आप होते तो
हो जाते लाजवाब
आकड़ों में
यह देश
विकास कर रहा है
और आम आदमी
आज भी
आप ही की तरह
उपवास कर रहा है
और जहां तक
गोडसेवाद का सवाल है
इस देश का
एक बड़ा तबका
उसे कबूल चुका है
आपका तपोस्थल भी
आपको भूल चुका है
महात्मा जी
शायद आपको
जानकारी न हो
आपकी जन्मभूमि में
एक अरसे से
एक नया मजहब
चल रहा है
जिसमें क्रूरता हंसती है
आदमी जल रहा है
महात्मा जी
किससे कहें
कैसे कहें
सोचकर
शर्म के मारे
मरे जा रहे हैं
इस देश के सांसद
कबूतरबाजी में
धरे जा रहे हैं
महात्मा जी
किससे कहें
अब सेना के जवान भी
ट्रेन के डिब्बों में
मनमानी करते हैं
आतंक से लड़ने वाले
ईनामी पुलिस अफसर
महिलाओं से
छेड़खानी करते हैं
महात्मा जी
हमारा कृषिमंत्री
चीनी व दूध का मूल्य
बढ़ने की सूचना
खुशखबरी
के रूप में देता है
हमारा प्रधानमंत्री
सरकारी विज्ञापन में
पाक सेना अधिकारी का
फोटो छपने को
गंभीरता से नहीं लेता है
और मीडिया के लोग
हमारी सदाशयता को
विफलता के रूप में
परोसते हैं
हमको ही कोसते हैं
जबकि यह देश
रोज नई उपलब्धि
गढ़ रहा है
जूता उछलने
के मामले में
अमेरिका के बराबर
चल रहा है
महात्मा जी
यहां की स्थिति
को लेकर
आप नाहक उदास हैं
इस तरह की
सैकड़ों उपलब्िधयां
हमारे पास हैं
आपको चाहिए तो
हम गोपनीय
तरीके से भेज देंगे
हमारा विश्वास करिए
इस देश में
हमारे नेतृत्व में
लोकतंत्र
फल रहा है
फूल रहा है
और खिल रहा है
नेहरू वंश की कृपा से
उसे चार गांधियों का
नेतृत्व मिल रहा है।
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 6:38 PM 0 comments
Labels: महात्मा गांधी
Thursday, December 31, 2009
Sunday, November 8, 2009
दुआ करो
हाथ मिला कोशिश कर भाई ऐसा भी हो सकता है।
अपना आंगन मंदिर मस्जिद गिरजा भी हो सकता है।
तुमसे मतलब नहीं है कोई लेकिन तुम भी दुआ करो,
अरसे से बीमार पड़ोसी अच्छा भी हो सकता है।
सच कहता हूं नफरत की यह आग भरोसमंद नहीं,
कल इसका आहार तुम्हारा बच्चा भी हो सकता है।
कुछ चित्रों को गैर समझकर कोई पुस्तक मत फाड़ो,
पलट के पढ़ लो उसमें अपना मुखड़ा भी हो सकता है।
मत इतनी उम्मीद करो कि जार - जार रोना होवे,
खून से सींचा आम फला तो खट्टा भी हो सकता है।
आंगन की दीवार उचककर कभी उधर भी झांको तो,
बिछड़ा भाई फिर मिलने को प्यासा भी हो सकता है।
हर मौसम को खौफ समझकर दरवाजा मत बंद करो,
आने वाला खुशियों का शहजादा भी हो सकता है।
बहुत बुरा है लोकतंत्र पर इतनी अच्छाई तो मानो,
इस रस्ते पर चलकर प्यादा राजा भी हो सकता है।
इस माटी के धोंधे को भी एक बार अवसर तो दो,
गुल्ली डंडा खेलने वाला गामा भी हो सकता है।
- धीरु
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 10:56 PM 1 comments
Sunday, October 25, 2009
सिपाही से भेंट
1
कवि सम्मेलन में
मंच पर
चढऩे से पहले ही
बोला एक सिपाही
कवि भाई
सही सलामत
घर वापस जाना है
तो थानेदार के खिलाफ
कविता नहीं सुनाना है
मैंने कहा, यार
मैं उस जनपद का
नागरिक हूं
जहां का जिलाधिकारी
मोहर्रम पर
बधाई देता है
आशा है
होली पर
शोक प्रकट करेगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कविताएं कौन पढ़ेगा
मैंने कहा, यार
मैं उस कमिश्नरी में
पत्रकार हूं
जहां का कमिश्नर
एक दिन में
एक करोड़
पौधे लगाता है
आशा है
सौ दिन में
सौ करोड़
पौधे लगाएगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कविताएं कौन सुनाएगा
मैंने कहा, यार
उस सूबे में
विधानसभा की
रिपोर्टिंग कर चुका हूं
जहां की विधानसभा में
विधायक
एक दूसरे पर
राड चलाता है
आशा है
सांसद होने पर
लोकसभा में
कट्टा चलाएगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कवितांए कौन सुनाएगा
मैंने कहा, यार
उस सूबे का पड़ोसी हूं
जहां का
मुख्यमंत्री
भैंस का चारा
पचा चुका है
आशा है
भावी मुख्यमंत्री
सुअर का चारा
पचाएगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कविताएं कौन सुनाएगा
मैंने कहा, यार
उस देश के लोकतंत्र का
प्रमुख स्तंभ हूं
जहां की लोकसभा में
फूलनदेवी
लोकतंत्र की परिभाषा
बतला चुकी हैं
आशा है
माफिया डान दाउद
देशप्रेम की
परिभाषा बतलाएगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कविताएं कौन सुनाएगा
मैंने कहा, यार
मैं उस देश का
वोटर हूं
जहां का प्रधानमंत्री
15 अगस्त को
गणतंत्र दिवस
बतला चुका है
आशा है
आने वाला प्रधानमंत्री
गणतंत्र दिवस को
परतंत्र दिवस बतलाएगा
जहां इतने विषय हैं
वहां थानेदार के खिलाफ
कवितांए कौन सुनाएगा
और सुनो
थानेदार के खिलाफ
कविता पढऩे का फल
मैं पहले ही भोग चुका है
इसलिए थानेदार को
डाकू नहीं कहूंगा
क्योंकि थानेदार तो
सारे आरोप
हंसकर टाल जाता है
और डाकू
गंदे आदमी से
तुलना करने पर
बुरा मान जाता है
और डाकू
बुरा मान गया तो
मैं जंगल में रहूंगा
पत्नी अदालत में
भटकेगी
मुझे छुड़ाने के लिए
न जाने
किन-किन बांहों की
सूली पर लटकेगी
संभव है
सबके बाद भी
पछताना पड़े
मेरी रिहाई के लिए
उसी डाकू के पास
जाना पड़े
सिपाही बोला
बकवास बंद करो
थानेदार कोई
महात्मा गांधी नहीं होता
जिस हर ऐरा-गैरा
नत्थू- खैरा
शैतान की औलाद कहे
और इस देश में
जिंदा रहे
थानेदार
थानेदार होता है
अपने कर्तव्य केप्रति
कितना वफादार होता है
नहीं जानते हो
इंदिरा गांधी की
हत्या की कहानी
पढ़ लो
इसलिए मेरी मानो तो
इस बार
थानेदार के
पक्ष में
कविता सुनाओ
भुगतान दूना लेकर जाओ
मैंने कहा
ठीक है यार
सोचूगा
कहकर आगे बढ़ा
कि किसी आप जैसे
आदमी का
घूंसा मेरे सीने पर पड़ा
बोला
क्या सोच रहे हो
चंद सिक्कों के लिए
चित्रगुप्त की कलम
बेच रहे हो
मैंने कहा, यार
तुम्हारा यह घूंसा
और घूंसा भरा प्यार
अच्छा लगा
लेकिन
एक बात
मेरी भी मानो
हिम्मत हो तो
उस व्यवस्था के खिलाफ
मुट्ठियां तानों
जो भाई को भाई से
दूर करती है
एक सिपाही को
कविता पढऩे से
रोकन के लिए
मजबूर करती है।
2
उलझी हुई दाढ़ी
बिखरा हुआ बाल
आज हो गया
जी का जंजाल
स्टेशन से उतरते ही
मुझको
एक सिपाही ने
पकड़ लिया
बोला
मेरी नजर से
बचकर
कोई नहीं
जा सकता है
सौदा यहीं कर लो
नहीं तो थाने में
महंगा पड़ सकता है
मैंने सिपाही को
अपना परिचय बतलाया
समझाया
कि दाढ़ी और बाल पर
मत जाओ
मैं वो नहीं हूं
जो तुम
समझ रहे हो
सिपाही बोला
तुम पुलिस से
उलझ रहे हो
थाने चलो
जब चूतर के नीचे
दारोगा की रुल लोगे
संसद पर हमले में भी
शामिल होना भी
कबूल लोगे
सिपाही और मेरे बीच
चल रही बहस सुन
एक नेता जी आ गए
मेरी तरफ से
सिपाही से
टकरा गए
मैंने सोचा विपदा टली
लेकिन
मेरा सपना
बहुत जल्द टूटा
मैं दस रुपए की जगह
सौ रुपए देकर छूटा
मैं हिम्मत नहीं हारा
नेता और सिपाही
दोनों को ललकारा
मैं कवि हूं
कवि सम्मेलन में
जा रहा हूं
वहां उल्टी सीधी सुनाउंगा
तुम्हारी नौकरी
तुम्हारी नेतागिरी
खा जाउंगा
सिपाही हंसा
मूर्ख
तूं कहां आ फंसा
तूं जहां जा रहा है
वहां जमीन पर बैठा
हिंदुस्तान मिलेगा
मंच पर जिलाधिकारी
और कप्तान मिलेगा
फैसला अभी से जान ले
भजन लाल की
संस्कृति पहचान लें
सौ की जगह
हजार देना
तब हमारा नाम लेना
और सुनो
इसके ऊपर
जाने पर
आदमी बस रोता है
वहां सौदा
कम से कम
लाख में होता है
यही नहीं
उनपर
उंगुली उठाने वाले को
बेमौत
मरना होता है
कवियों को भी
फांसी पर
चढऩा होता है
सिपाही की बात सुन
मेरे होठ सूख गए
बहुत मुश्किल से
अब आपके समक्ष
बोल रहा हूं
कि सवाल केवल
सौ रुपए का नहीं
सवाल
संपूर्ण व्यवस्था का है
जिसके दागदार होने से
यह देश
दागदार हो जाता है
एक कवि
पाकिटमार हो जाता है।
-धीरु
Posted by धीरेंद्र श्रीवास्तव at 8:03 PM 11 comments